Sunday, January 10, 2010

विकास का पैराडाइम ग्लोबल वॉर्मिंग

शाम की गीली सर्दी में चौक पर दम फूंक हो रही थी कि चित्तरकार हाथ में अंडों की थैली लटकाए खरामा खरामा चप्पल घिसते चले आए। देखते ही पान सने लाल दांत दिखाए और दोस्ती का वज़न मेरे कंधों पर डाल दिया। गले मिल लेने के बाद बोले कहां हो पत्तरकार नज़र नहीं आते। मैंने बस मुस्कुरा भर दिया। बोले क्या बात सर्दी में गर्मी का अहसास, शाम होते ही जमा लिया या फिर मनमोहन सिंह की तरह मुस्कान की चादर ओढ़ना सीख गए। भई सवाल पूछा है तो जवाब तो दो। मैंने कहा चित्तरकार आजकल दफ्तर से फुरसत नहीं मिलती। मुंह बिचकाकर शिगूफा मारा, दफ्तर में कौन शकरकंद उबाल रहे हो।


खैनी को रिटायरमेंट देते हुए चित्तकार बोले कि मनमोहन सिंह से याद आया कि हाल ही में तिरुवनंतपुरम में फिर कोपेनहेगन पर कुछ कह रहे थे हमारे पिरधानमंत्री। पता नहीं क्यों कोपेनहेगन की पूंछ पकड़कर झूल रही है सारी दुनिया ? तुम तो तमाम चिल्ल पों मचाते हो बताओ जरा कुछ।

गेंद मेरे पाले में थी, बोलने की बीमारी, झट से माइक लपक लिया और लगा सुनाने...198 देश, 15 हजार नेता, सुलगती धरती, कार्बन एमिशन का झगड़ा, अमीर और गरीब मुल्कों के मतभेद, बात पूरी नहीं हुई थी कि पोडियम पर फिर चित्तरकार चढ़ गए। बोले, भाईसाब, नतीजा क्या निकला? मैं बोला कुछ नहीं, तो फिर क्यों हाय तौबा मचाए हो।

चर्चाएं हो रही हैं और नतीजों में चर्चाएं निकल रही हैं। धरती ठंडी करने निकले थे सारे नेता और खुद हवाईजहाज और लीमोज़ीन से हवा गर्म करते हुए कोपेनहेगन चर्चा करने पहुंचे थे। इसी बीच चित्तरकार ने पान का ऑर्डर दे मारा और फिर वापस मुद्दे पर लौट आए।

भाईसाब नेता चर्चा से धरती ठंडी कर रहे हैं। धरती ठंडी करनी है तो चर्चा तो करनी पड़ेगी। चर्चा नेताओं का मौलिक अधिकार है। धरती ठंडी करने के लिए मिजाज के माकूल और ठंडे मौसम में ही बेहतरीन चर्चा हो सकती है। इसलिए विदेश में चर्चा सम्मेलन सभागार का चुनाव भी मौलिक अधिकार है।

चर्चा सभी संकटों का हल है। चर्चा के नतीजों में नेताओं के बीच कितने भी मतभेद हों लेकिन एक मुद्दे पर सारे मतभेद खत्म हो जाते हैं, बाकी चर्चा अगले सम्मेलन में की जाएगी। चर्चा वो महाकाव्य है जिसमें नेता भांय-भांय कर लौट आते हैं, और चर्चा से निकलने वाला अगली चर्चा का रास्ता ही चर्चा का नतीजा होता है। चर्चा से ही सभी कर्तव्यों की पूर्ति होती है। चर्चा से ही धरती ठंडी हो सकती है।

मैं बोला चित्तरकार मामला गंभीर है ऐसी बातें ना करो, लेकिन उन्होंने ग्लोबल लीडर्स को रास्ते में पड़ी कुतिया की तरह लतियाना जारी रखा। मनमोहन सिंह वहां तो पैसे की आड़ लेकर जिम्मेदारियों से मुंह फेरते रहे और यहां शेख हसीना को मिलयनों डॉलर बांट रहे हैं। ये तो वही बात हुई कि घर में ना दाने, और सरकार चले लुटाने। मैं बोला चित्तरकार कहावत तो यूं है...तो बोले चुप करो बे। तुम पत्तरकार हो और दूसरों की कहवतों पर जीते हो। कुछ तो किरयेटिव कर लिया करो।

इतना कहकर चित्तरकार ने मुंह में पान की बहाली कर दी। होठों के कोरों की पीक अंदर खींचते हुए बोले। ये नेताओं के चोचले हैं। नेता और अफसर अमले की विदेश यात्रा और मिजाज़ दुरुस्त रखने के लिए ऐसे सम्मेलन विदेश में रखे जाते हैं। यूं तो नेता जात और कल्याण शब्द का केवल बस और सवारी वाल संबंध है। सत्ता की मंज़िल पर पहुंचकर इस शब्द को ये ऐसे ही छोड़ देते हैं जैसे सवारी बस को। लेकिन अब कल्याण का ठेका खुद प्रकृति ने ले लिया है तो दुनिया के पेट में मरोड़ हो रही है।

गर्मी से ही मानव कल्याण, समता मूलक समाज, रंगभेद और जीवन शैली की ऊंच नीच खत्म होने वाली है। इसीलिए धरती गर्म हो रही है। नेताओं ने कल्याण के लिए बस आंकड़े जुटाने वाली कुछ संस्थाएं बनाई हैं। यूएनडीपी, डब्ल्यूएचओ, वर्ल्ड इकनोमिक फोरम जैसी संस्थाएं अमीरी गरीबी के आंकड़े जुटकार गरीब देशों की बेइज्ज़ती करती रहती हैं। मैं बोला ऐसा नहीं है चित्तरकार ज़रा सुनो। अरे तुम क्या सुनाओगे।

इतने में सामने से बुल्ला गुजरा और चित्तरकार ने हुंकार के साथ उसे बैठने का बुलावा दिया। बुल्ला लपककर बेंच पर ऐसे बैठ गया जैसे उसे राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिल गई हो। चूना चाटकर पान की पोटेंसी बढ़ाते हुए चित्तरकार फिर मुद्दे पर लौट आए। नेताओं को लगता है कि बेइज्ज़ती से ही विकास हो सकता है, लेकिन इनके विकास के ‘अपमान पैराडाइम’ का तोड़ अब कुदरत ने ढूंढ निकाला है।

बैरी सर्दी न जाने कितनों की मौत का फरमान लाती है। बूढ़े रज़ाई में टें बोल जाते हैं और गरीब फुटपाथों पर अकड़ जाते हैं। जाड़े की विदाई से अब ज़िंदगियां बचेंगी। गरीब देशों की जन्म मृत्यु दर और जीवन प्रत्याशा बढ़ी हुई दर्ज़ की जाएगी। गर्म कपड़ों में बर्बाद हो रहे पैसे की बचत होगी। फिर गरीब नागरिक भी बारहों मास लाइफ स्टाइल से जियेंगे। गर्मी से गोरे काले का भेद मिटेगा। दुनिया रंग बिरंगी से समतामूलक एक रंगी हो जाएगी

... तो नेताओं से अपील है कि सभी तर्कवीर और बहस बहादुर चर्चा पर चर्चा करते रहें बाकी विकास प्रकृति कर देगी, और तुम सुनो तुम्हारे लिए ये सारा पुराण अलापा है जाओ अपने चैनल में जाकर ऐसा ही पैकेज चलाओ या फिर मुझे लाइव बहस में उतारो। मैंने सोचा आपसे पहले तो पीकदान लाइव उतारना पड़ेगा। उसके बाद बोले आओ सूरज अस्त हो गया। रिजाई जेब में पड़ी है, किसी ठेले पर पकौड़े छनवाएं। मैं बोला तीन दिन पहले ही पी थी, आज नहीं, लेकिन चित्तरकार मेरी कोहनी में हाथ फंसाकर मुझे इस तरह घसीटने लगे जैसे कुत्ता कुतिया को घसीट ले जाता है। चर्चा समाप्त और बैठकी शुरू.. और चित्तरकार ने ढक्कन खोल दिया।

3 comments:

Unknown said...

वो कोपेनहेगन नहीं था कालीदास का सम्मेलन था।

Unknown said...

। फिर गरीब नागरिक भी बारहों मास लाइफ स्टाइल से जियेंगे। गर्मी से गोरे काले का भेद मिटेगा। दुनिया रंग बिरंगी से समतामूलक एक रंगी हो जाएगी ...........
sarthak lekh, bahut kam log aisa likh pate hai apne suruati daur mein ......

Tara Chandra Kandpal said...

बहुत खूब लिखे हो, भाषा में थोड़े सुधार कि जरुरत है!

चालु चर्चा के गर्भ से ही भविष्य कि कई चर्चाएँ चिल्लो-च्याओं करते निकल ही आती हैं, ग्लोबल-वार्मिंग इस दुनिया में एक रंगी समतामूलक सभ्यता के बीज बो रही है, यह बहुत अच्छी बात है! और चित्रकार ने बहुत दिनों के पश्चात अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है, और बुल्ला ने पहली बार...