Saturday, December 8, 2012

ज़िंदगी प्रोमिसरी नोट है


1. पीछे छूटते शहर को सोचा है कभी। क्रेनों के आसमान से पटे फ्लैट्स मन से निकलते जाते हैं। धरती के कैनवास पर फैली हरियाली एक आशियाने की ख़्वाहिशों को डायल्यूट कर देती है। दुनियादारी छूटती जाती है। शहर ज़ेहन में ख्वाहिशें बोते हैं। हर ख़्वाहिश की ईएमआई है। हर ईएमआई कहती है मेक योर एफ़र्ट लार्ज।

2. ख़्वाहिशों के भूगोल पर फैले काम ख़त्म नहीं होते। ये करना है, वो करना है, ऐसा बनना है, वैसा बनना है। हर इबादत में एक्सटेंशन की मांग। थोड़ी और मोहलत विधाता। ज़िंदगी सामाजिकता निभाने का कर्ज़ा है। धूप-दीप हिलाकर रोज़ प्रोमिसरी नोट बढ़वाना है।

3. कहते हैं, आसमां से आगे जहां और भी हैं, लेकिन ये जहां ही जैसे आत्मा का चोगा है। यहीं पैदा होना, मरना और फिर यहीं चले आना। छोटी ख़्वाहिशें बड़ी ख़्वाहिशों का बाई प्रोडक्ट हैं। ज़िदंगी तालमेल की रस्सी पर सर्कस का करतब। अध्यात्म, आस्था और विश्वास जीने का टॉनिक। धार्मिक किताबें औसत आदमी की मानसिक बीमारियों का टिंचर है। जिस पर चढ़ा है ख़ुदा, भगवान, गॉड का अलग-अलग रंग।

4. धर्म सरल रेखा जैसी दिखने वाली विभाजन की आड़ी-तिरछी रेखा है। हम बंटे हैं गीता, क़ुरान और बाइबल के फॉलोअर्स में। अशरफ़ भाई* ने बताया था, क़ुरान आसमान से उतरी है। शायद ख़ुदा ने आसमान में प्रिंटिंग प्रेस लगाई है। जिसमें चित्रगुप्त हमारी तक़दीरें प्रिंट कराकर रखते हों शायद।  

5. वी आर अबाइड विद रूल्स ऑव अवर रिलीजन्स। बीवी कहती है मंगल में दारू-मीट को हाथ नहीं लगाना। धर्म और भगवान भी दिनों के लिहाज से आते हैं। कभी-कभी लगता है आध्यात्मिक हॉरर फिल्म के किरदारों से घिरा हूं। अशरफ़ भाई व्हिस्की नहीं पीते। हराम है। तन्हाइयों में सरगोशियों के साथ बीयर गटकते हैं। जबकि उस पर भी ख़ुदा का ऑर्डिनांस तो नहीं चस्पा है। फिर सड़क पर प्रचलित भारतीय शैली में हल्के होते हैं। मैं हमेशा कहता हूं। शेक वैल आफ्टर यूज़ अशरफ़ भाई। कपड़ों पर बूंद गिरी तो नापाक़ होने का खतरा है।      

*अशरफ़ भाई पैतृक शहर के घणे दोस्त हैं।