Wednesday, February 25, 2009

कांग्रेस नीत यूपीए की खुल गई पोल!

13 फरवरी को संसद में अंतरिम बजट पेश करते हुए प्रभारी वित्त मंत्री संसद में कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ होने का दावा कर रहे थे और उन्हें उम्मीद है कि इस बार फिर जनता कांग्रेस को दिल्ली दरबार सौंपेगी। संप्रग सरकार ने आम आदमी के हित के नाम पर पहले से चल रही कई योजनाओं के लिए हजारों करोड़ रुपये जारी किए, लेकिन जिस भारत निर्माण कार्यक्रम को सीढ़ी बनाकर कांग्रेस दिल्ली के सपने सजा रही है उसकी पोल लेखा नियंत्रक एवं महापरीक्षक (कैग) ने खोल दी है। संप्रग सरकार के भारत निर्माण कार्यक्रम में आखिरकार कैग ने कई छेद खोज निकाले। पिछले वित्त वर्ष के खर्च के ब्यौरे को देखते हुए लगता नहीं कि सरकार और कैग के खातों में तालमेल है। 23 फरवरी को जारी कैग रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि सरकार विभिन्न योजनाओं के खर्च को आंकड़ों की बाजीगरी से बढ़ाकर पेश कर रही है।
2007 में भारत निर्माण के अंतर्गत चल रही योजनाओं के लिए सरकार ने इक्यावन हजार करोड़ से ज्यादा राशि मंजूर की थी और इस राशि को स्वायत्त और गैरसरकारी संस्थाओं के खातों में स्थानान्तरित किया जा चुका था। कैग को दिए गए जवाब में संप्रग सरकार का कहना है कि योजना को जमीनी स्तर पर लागू करने वाली संस्थाओं ने असल में कितना रुपया खर्च किया है इस बारे में सरकार को कोई जानकारी नहीं है। कैग ने इस मामले में भ्रष्टाचार की गंध सूंघते हुए कहा है कि योजना लागू करने वाली इन संस्थाओं के खातों में दिया गया धन सरकारी खातों के दायरों से बाहर है। साथ ही यह राशि सरकारी चेक और बैलेंस के दायरे से भी बाहर हैं। कैग ने सरकार को लताड़ते हुए कहा है कि गैरसरकारी संस्थाओं को जारी किए गए रुपये में से न खर्च किए गए रुपये का ब्यौरा आसानी से नहीं पता लगाया जा सकता है। ऐसे हालात सरकार की लापरवाही से पैदा हुए हैं। संप्रग के आंक़ड़ों की बाजीगरी पर कैग ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि खातों में हेर-फेर के लिए सीधे पर तौर वित्त मंत्रायलय के खाता नियंत्रक महानिदेशक और व्यय सचिव को जिम्मेदार माना जाएगा और हर बात की जवाबदेही इनकी होगी। यह एक एतिहासिक फैसला है कैग ने पहली बार वित्त मंत्रालय को डाइरेक्ट पार्टी बनाया है।
कैग की रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब चुनाव आयोग कभी भी लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों का एलान कर सकता है। चुनाव में आम आदमी के हित का राग अलापने वाली कांग्रेस की छवि को इस रिपोर्ट से लोकसभा चुनाव में धक्का लग सकता है, लेकिन मुझे यह मुमकिन नहीं लगता क्योंकि इस तरह की जानकारी आम आदमी के पास तक नहीं पहुंचती।
कैग ने आम आदमी के हित के बहाने सरकार की फिजूलखर्ची की तरफ भी इशारा किया है। कैग ने 2006 के आंकडो़ का हवाला देते हुए कहा है कि सामाजिक एवं ढांचागत विकास निधि (SIDF) का धन सरकार ने अन्य गैरजरूरी योजनाओं में बहा दिया। इस धन से विकलांगों के लिए रोजगार, ग्रामीण गरीब आबादी के लिए बीमा जैसे जनहित के काम होने थे जबकि सरकार ने इन योजनाओं के हिस्से के धन को कई सांस्कृतिक संस्थाओं को अनुदान देने के साथ ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ मनाने में खर्च कर दिया। 2007 में सरकार ने 6,500 करोड़ और 2008 में 6,000 हजार करोड़ रुपये सामाजिक एवं ढांचागत विकास के मद में जारी किए, लेकिन इन दोनों वर्षों में सरकार ने इस निधि का 3,000 हजार करोड़ रुपया गैरसरकारी संस्थाओं को अनुदान दे दिया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गैरजरूरी खर्च कर दिया। यहां एक बात सभी जानते हैं कि नौकरशाही में फैले भ्रष्टाचार को देखते हुए गैरसरकारी संस्थाओं को जनहित योजनाएं लागू करने के लिए सरकार ने साझीदार बनाया था। नब्बे के दशक में आई इन संस्थाओं ने शुरू शरू में जिम्मेदारी से काम किया लेकिन उसके बाद ये संस्थाएं भी भ्रष्टाचार की चपेट में आ गईं और साथ ही सरकार की जेबी संस्थाएं बन गईं। आज हमारे राजनेताओं के अपने खास लोग इन संस्थाओं को चला रहे हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर संप्रग सरकार के मुख्य घटक और परिवहन मंत्री टी. आर. बालू पर भी संस्थाओं और अपने परिजनों को अनुचित लाभ पहुंचाने के आरोप लगे हैं। इससे पहले की सरकार पर भी ऐसे आरोप लगे हैं।
इसके अलावा सरकार ने “आम आदमी” यानी ग्रामीण आबादी को टेलीफोन सब्सिडी के लिए 20,000 करोड़ रुपये जारी किए, लेकिन इस राशि में से केवल 6,000 करोड़ रुपये ही इस मद में खर्च हो सके। बाकी के धन के बारे में सरकार कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं करा पाई है। 20,000 करोड़ रुपये की यह राशि सरकार ने 2003 से 08 तक सार्वभौम सेवा दायित्व निधि(Universal Service Obligation Fund) से इकट्ठा किए थे। बात साफ है कि बाकी बचे हुए धन से सरकार ने राजस्व घाटे की पूर्ति की है। खैर राजस्व घाटे की पूर्ति भी जरूरी है लेकिन इसके लिए आम आदमी को धोखे में रखने की कोई जरूरत नहीं है।
इन आंकड़ों को देखकर साफ पता चलता है कि सरकारें कैसे आम आदमी को बेवकूफ बनाकर अपना हित साधती रही हैं। आंकड़ों की बाजीगरी से नागरिकों को छला जा रहा है। कैग की रिपोर्ट हरेक वित्तीय वर्ष के बाद आती है और रद्दी की टोकरी में चली जाती है। उसे न सरकार तवज्जो देती है और न ही हम। आज हम अपने अधिकारों के लिए जागरुक हो रहे हैं। ज़रा सोचिए क्या हमारा अधिकार यह नहीं कि हम अपनी सरकार के खर्च के ब्यौरे को नजदीक से जानें और कैग रिपोर्ट को आधार बनाकर अपनी सरकार चुनने का फैसला करें?

Monday, February 23, 2009

जय हो! की जय

इक्यासिवें ऑस्कर अवॉर्ड्स में पहली बार भारतीयों ने धाक जमा दी। बेस्ट फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर ने इतिहास रचते हुए आठ ऑस्कर पर कब्जा किया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की बच्ची पर आधारित एक शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म स्माइल पिंकी को भी बेस्ट शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए एक ऑस्कर से नवाजा गया।

एक ऑस्कर की उम्मीद लिए हमारी कई फिल्में ऑस्कर दरवाजे से लौ़ट आईं, इसलिए मीर का एक शेर याद आता है। बारहा ये हुआ जाकर तिरे दरवाज़े तक, हम लौट आए हैं नाकाम दुआओं की तरहा, लेकिन सोमवार को सौ करोड़ लोगों की उम्मीदों को स्लमडॉग मिलिनेयर ने आखिरकार पूरा कर ही दिया। स्लमडॉग मिलिनेयर ने बेस्ट फिल्म का अवार्ड अपने नाम करके पूरी दुनिया में बॉलीवुड की धाक जमा दी। एक ऑस्कर के लिए तरस रहे भारत की झोली में आठ-आठ ऑस्कर डाल दिए। गोल्डन ग्लोब से जीत का सफरनामा शुरू करते हुए वाया बाफ्टा ऑस्कर में भी स्लमडॉग ने जय हो का झंडा बुलंद कर दिया।

सायमन बिफॉय के नाम बेस्ट अडॉप्टेड स्क्रीनप्ले के लिए पहले ऑस्कर का एलान होते ही स्लमडॉग ने भारत के फिल्म जगत में इतिहास की एक अमिट इबारत लिख दी। इसके बाद बेस्ट सिनेमेटॉग्राफी के लिए एंथनी डॉड मेंटल, बेस्ट साउंड मिक्सिंग के लिए रेसूल पोकुट्टी और स्लम डॉग मिलिनेयर की बेस्ट एडिटिंग के लिए क्रिस डिकेंस को भी ऑस्कर अवॉर्डस मिले, लेकिन अब भी हर भारतीय एक नाम सुनने को तरस रहा था और वो था ए आर रहमान। ये घड़ी भी जल्द ही आ गई। ए आर रहमान को ऑरिजिनल स्कोर के लिए बतौर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार ऑस्कर से सम्मानित किया गया। जिस गीत जय हो ने भारत की जय का झंडा बुलंद किया उसके लिरिक्स के लिए गुलजार को बतौर सर्वश्रेष्ठ गीतकार ऑस्कर दिया गया। इस बार के लगभग सारे ऑस्कर उड़ा लेने के बाद बारी थी इस अज़ीमो शान फिल्म के निर्देशक डैनी बॉयल की, और बिना शक इस सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के नाम के साथ ऑस्कर विनर की मुहर लग गई। ऑस्कर की गिनती के लिहाज से देखें तो स्लमडॉग ने टाइटेनिक को भी पछाड़ दिया है।

इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के डिबही गांव की पिंकी ने भी इस खुशी में थोडी और मिठास घोल दी है। अपने कटे होंठ की वजह से उपहास का शिकार बनी इस बच्ची के संघर्ष और उसके होठों के इलाज पर आधारित कहानी स्माइल पिंकी को सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए ऑस्कर दिया गया।

ये केवल बॉलीवुड की ही नहीं बल्कि उन करोड़ों तरसती आंखों की जीत है जो ऑस्कर को अपनी धरती पर देखने के लिए तरसती रही हैं। आज लाखों नम आंखें जय हो का खम ठोक रही हैं। ए आर रहमान जैसे संगीतकार पर फख्र कर रही हैं। करोड़ों हाथ एक साथ मिलकर भारत की विजय पर ताल ठोक रहे हैं। हालांकि बॉलीवुड के किसी फनकार को अपना फन साबित करने के लिए ऑस्कर जैसी विदेशी सनद की ज़रूरत नहीं है, लेकिन अगर हमारी शोहरत में एक और सितारा जड़ जाए तो खुशी होना लाज़िमी है। मन कह रहा है कि रहमान आखिरकार तुमने कर दिखाया, रिंगा रिंगा रिंग को अंग्रेजों की खुशी का ही नहीं बल्कि स्लम की खुशी का संगीत बना दिया। जय हो की तान छेड़कर भारत की जय कर दी। तुम ऑस्कर में नामित होने के बाद पहले भारतीय हो जो ऑस्कर छीन लाए। सच है कि सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है, तो हम भी कहें जय हो।