Wednesday, July 20, 2011

तुम्हें याद है !

तुम्हें याद है, मेरे सपनों का एक धागा,

जब तुम्हारी ज़िंदगी में उलझ गया था,

सपाट सी दो ज़िदगियां पेचीदगी भरी हो गई थीं,

तितलियों से चुराई तुम्हारी रंगत गुम थी,

और मेरी पलकों से नींद के तकिए लुढ़क गए थे,

तुम्हारी आंखें खाली कटोरे सी थीं,

एक खामोशी चीखती थी उनमें,

और मेरी आंखों में जैसे ओस हिलग गई थी,

उन बूदों में चमकती थीं सपनों की दरारें,

तुम्हारी हंसी रूखी थी सर्द हवा सी,

और मेरी हंसी कभी आंखों तक नहीं आती थी,

मन में गुबार था मैल नहीं,

प्यार की पुलटिस लगा गुस्सा था,

होठों पर तैरती थी ख्यालों की जुंबिश

पर माहौल के ताले ज़ुबां पर लटके थे

सुलझाने के फेर में और उलझती थीं हमारी ज़िंदगियां,

तुम्हें याद है, एक दिन तुमने उलझे धागे को तोड़ दिया,

तब से, सपनों का कचरा बीनता हूं,

तहें लगाता हूं मन की अंधेरी कोठरी में,

करीने से लगाने की ख़ातिर,

क्योंकि सपने डिस्पॉज़ नहीं होते,

लेकिन अपनी आंखों में देखना आज,

उलझन अभी भी बाकी है...