संघर्ष,
ज़िंदगी की आपाधापी के बीच
जीने की जद्दोज़हद और किलस के बीच
लाचारी में जब इच्छाओं का दम घोंटना पड़े
जब अभाव खाली आंतों में गुड़क-गुड़क बोले
जब बोझिल मन किसी नाबदान की पुलिया पर बैठा दे
जब एक प्याला चाय दिन भर की भूख सुड़क ले
आंखों से बहते कीचड़ के साथ जब सपने बहने लगें
मन नाउम्मीदी के नाले में बहता दूर निकल जाए
फिर कहीं से एक उम्मीद बंधे
मेरे हिस्से का चांद टूटकर टपकेगा
गड्डमड्ड अंधेरे में पड़े मन को उम्मीद की सीढ़ी मिले
आपाधापी के बीच सकून की एक टिमकनी दिखे
जब आंखों के कीचड़ के साथ बहे सपने वापस लौट आएं
तब सारे अभाव संघर्ष बन जाते हैं।
आपाधापी बनती है संघर्ष
संघर्ष, मन रखने को देखे गए सपनों का आधार
ज़िदगी का रास्ता तय करने का जीवट
पनीले सपनों, रूमानी ख्यालों का ताना-बाना
सकून ढूंढने की सहज वृत्ति से पनपता है संघर्ष
कुछ नहीं एक भरम है
रोज़ जीते, रोज़ मरते इंसान की ज़िंदगी में
सपनों का 'स्टेयरकेस' है संघर्ष
5 comments:
एकदम झकास ......बेमिसाल ........
अच्छा संस्मरण है। लेकिन थोड़ा कठिन है।
खूब....अंतरआत्मा की आवाज...दिल खोल कर रख दिया
bahut hi sundar............
sabki kahani aapki zubaani bahut badia!
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