Wednesday, November 4, 2009

ब्रांड आतंकवाद

एक ब्रांड आंतकी से टकराव हो गया। हमारी मुलाकात तो पुरानी है लेकिन मुझे ब्रांड की चोट नई-नई लगी है। मेरी तंगहाली के चंद आखिरी रुपयों की क्लासिक रेग्युलर सिगरेट होठों में भींचे, ब्रांड आतंकी मुझे ब्रांड का मर्म समझा रहा है। हम तो यही पीते हैं। इसका स्वाद ही कुछ और है इसीलिए महंगी है। आखिर ब्रांड की कीमत होती है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इस सिगरेट में कश मारने से क्या रोग़न ए बादाम फेफड़ों में जाता है ? धुंआ निकालना है किसी भी कंपनी की सिगरेट में दमफूंक करो निकल जाएगा, लेकिन वो मेरी मूढ़मति पर हैरत में था। वो कहता है, कि तुम सोशल स्टेटस नहीं समझते हो। ठेलों पर खाते हो सस्ती सिगरेट का धुआं उड़ाते हो। सस्ती सिगरेट का नाम लेकर वो मुझपर हिकारत भरी नज़र ऐसे डालता है मानो ग्लोबल वार्मिंग के लिए मैं और मेरी सस्ती सिगरेट जिम्मेदार हैं। मैं उसे समझाने की कोशिश करता हूं, वो मेरे होठों पर ब्रांडेड चुप्पी लगाने की कोशिश कर रहा है।

उसने बताया कि तुम आदमी सड़क के, लेकिन दुनिया ब्रांड से चलती है। ‘आदिदास’ का जूता पहने पैर को उठाकर जांघ पर चढ़ा लिया। नाम भले आदि ‘दास’ हो, लेकिन उसे पहनकर वो स्वयं को विक्रमादित्य के सिंहासन पर आरूढ़ समझ रहा है। आदिदास तरफ इशारा करके बोला जानते हो, फटीचर हो तुम। क्या पहचान है तुम्हारी ? U LAY MAN! वह मुझे समझा रहा है ब्रांड से आदमी की इज्ज़त में इज़ाफा होता है। ब्रांड के जाल में मुझे फंसाने की कोशिश करते हुए आदिदास नाम का जूते की आड़ में ब्रांड आतंकवाद से मेरी सादगी को कत्ल कर रहा है। मैं छटपटा रहा हूं, जिसे खरीदने की औकात नहीं उसे पहनूं कैसे ? वह कह रहा है कि तुम्हारे लिए बी ग्रेडेड ब्रांड का विकल्प खुला है। किसी कस्टम शॉप में जाकर धंस जाओ। हज़ार से नीचे-नीचे ब्रांड मिल जाएगा और तुम्हारी नाक बच जाएगी। अगर उसे भी पहन नहीं सकते तो इससे पिटकर ही अपना सम्मान हासिल करो। ब्रांडेड जूते से पिटना भी मेरे लिए सम्मान की बात हो सकती है मैंने कभी नहीं सोचा था। आधा घंटा ब्रांड बांचन के बाद निष्कर्ष निकला कि ब्रांड आदमी की पहचान बनाता है।

मैं हैरत में हूं, लेखनी से पहचान बनाने की कोशिश में जुटा हूं और इसने आदिदास, प्यूमा, ‘नाई-की’ का जूता पहनकर ही खुद को श्रेष्ठतम मानव श्रंखला में लाकर खड़ा कर दिया है। ब्रांड के दीवानों का दीवानापन न पूछिए। इनकी अपनी एक मात्र पहचान ब्रांड है। नाइकी, लिवाइस, पेपे जीन्स, वुडलैंड, एडिडास, रीबॉक, रेबैन से इनका आत्मगौरव जुड़ा है। इनका कोई दोस्त ब्रांडेड जीन्स, शर्ट, चश्मे ले आए तो इनके मुशाएरा-ए-चौक में उसका ही चर्चा होता है। दो दिन तक उसी को गौरव दीप बनाकर पूजते हैं। भविष्य में ब्रांड आतंकी सरकार से मांग कर सकते हैं कि अपने बाप के नाम की जगह ये ब्रांड का नाम मेंशन करेंगे। इसके लिए सरकार विशेष अधिसूचना जारी करे, या फिर मौलिक अधिकारों की सूची में इज़ाफा कर प्रावधान हो कि कोई भी स्वयं को ब्रांड पुत्र घोषित कर सकता है। कुल मिलाकर चौक पर आधा घंटे चले गाल बजाओ कार्यक्रम में ब्रांड आतंकवाद के मंच पर विचार हार जाता है। उसे न बोलने का अवसर मिलता है न ही उसे ब्रांड आतंकी समझना चाहता है। ब्रांड, विचार को पीछे धकेलने की साजिश है ! बताइये मैं क्या करूं ?

4 comments:

Unknown said...

It feels very good u r not fond of Brand. I'm also like u. Besides it's reality that we can't afford branded goods...But those who say they wear only brands they are just lavishing their parents hard earned money.....

Brajdeep Singh said...

ain bandhubar aapka,aajkalhum bhi brand k baare main hi padh rahe hain ,ki kaise company branded banti hain ,aapke bhaisaab ki baatoko sunkar lag raha hain ,kihamari naukri lagbhag pakki hi hain,ab hum kam sekampahnne walashoesna bana sake koi baat nahi ,inovation ka samay hain,sir ko peetne wala brand bhi bazar main hona chahiye
dhanybaad aapkeinovative idea ke liye

Unknown said...

किसी पर पर्सनल अटैक करना बुरी बात है...

Tara Chandra Kandpal said...

I agree with Anupam Ji, a person wearing a good Brand like, John Players and Woodland should not have written this..........