Sunday, March 29, 2009

विद्यार्थियों भाड़ झोंको

कहीं रतजगा, कहीं शिकन। ढिबिया की रोशनी में बांचन। मां-बाप की उम्मीदों का बोझ। पड़ोसियों की निगाहें। फिकरे, तंज़ मानसिक पीड़ा इतनी कि आत्महत्या तक कर गुजरें। बच्चे लगातार किताबों में सर गड़ाए पड़े हैं। पड़ोसी का डर है। पिताजी डांटेंगे अगर पड़ोस के पप्पू से कम नंबर आए तो। युनिवर्सिटी में दखिला नहीं मिलेगा। फेल हो गया तो क्या करुंगा। मोहल्ले वाले दो महीने तक जीना हराम कर देंगे। यही होता है न बोर्ड एग्जाम। इन्हीं चिताओं का पिटारा लेकर आती हैं परीक्षाएं। बच्चे और मां-बाप सबके दिल कलेजे को आते हैं। लेकिन ऐसे परीक्षार्थियों से मिलकर आ रहा हूं जिनके न मां-बाप को चिंता है और न ही उन्हें। पेपर है तो होगा। हो ही जाएगा। मास्साब हैं ना। एक एक नंबर के सवाल तो सोल्व करा ही देंगे। बाकी प्रश्नों के हेडिंग्स पूरे हॉल में बांट दिए जाएंगे। फर्स्टक्लास तो कहीं नहीं गई। चिंता किसलिए करें। पहले ही भरपूर पैसा दिया है स्कूल को नकल कराने के लिए। यही हाल कुछ नए-नए खुले डिग्री कालेजों के हैं। कुछ कूपढ़ों को पढ़ाने के लिए खुले ये कॉलेज सौ फीसदी रिजल्ट दे रहे हैं। दूर दूर तक विख्यात हैं, इनके एग्जाम कराने के तौर तरीके। वहां से बनती है जबरदस्त परसेंटेज। फिर निकलती है ये खेप नौकरियों की तलाश में। कोई शिक्षा मित्र, कोई ऐसे ही तौर तरीकों से बीएड की डिग्री हासिल करके विशिष्ट बीटीसी। जिसमें कोई विशिष्टता नहीं वही विशिष्ट हो जाता है। प्राथमिक शिक्षा तो वैसे भी लचर पड़ी है। इनके शामिल होने के बाद तो कमर ही टूट जाएगी। क्या करेगा आचार संहिता के हिसाब से परीक्षा देने वाला विद्यार्थी। कहां मिलेगी नौकरी। नौकरी की छोड़िए इनकी परसेंटेज को पछाड़कर अच्छे कॉलेज में एडमिशन भी नहीं ले सकता। आप बताएं ज़रूरी हैं क्या ऐसे कॉलेज खोलने। हम इनका मिलकर तिरस्कार नहीं कर सकते?

2 comments:

Brajdeep Singh said...

KYA LIKHA HAIN MIYA MAN GYE APP KO AUR APP KI PAR KI NAZAR KO
KAFI ACCHA LIKHTE HO MERI TARAH !
KYA KABHI MERE BLOG PER AAYE HO KYA ?

Brajdeep Singh said...

KYA LIKHA HAIN MIYA MAN GYE APP KO AUR APP KI PAR KI NAZAR KO
KAFI ACCHA LIKHTE HO MERI TARAH !
KYA KABHI MERE BLOG PER AAYE HO KYA ?