Saturday, March 14, 2009

दिल्ली है मेरे यार, इश्क का कारोबार

बाबुओं का शहर और नेताओं की सराय दिल्ली, अचानक रूमानी हो उठा है। इतना रूमानी की बॉलीवुड ने हाल में ही तीन चार फिल्मों से इस शहर का वारफेर किया है। मुंबई के मरीन ड्राइव से उठाकर दिल्ली की तंग गलियों में इतना प्यार भर दिया कि खुद दिल्ली 6 को ही हजम नहीं हुआ। मुंबई के मन में दिल्ली के लिए प्यार पनप गया। राज ठाकरे के पास इसके कॉपी राइट नहीं थे वरना बाहरिये पर बौछार, भूल जाओ। दिल्ली 6 के गानों से फायदा उठा रहे हैं एफएम के लव गुरू। दिल्ली में प्यार कहां जी, कारोबार है।
शरम से शायरी कहीं डूब मरना चाहती है। अच्छा हुआ गालिब जिंदा नहीं हैं शायरी का पलीता देखने को। जिंदा बचे कुछ एहतराम लायक शायर मुंह बचाए फिरेंगे। बकौल शायर प्यार दिल से फूटता हो, यहां तो ईपी यानी ईयर फोन से फूटता है। पहले आंखों के रास्ते दिल में उतरता होगा, अब तो इंस्टेंट प्यार ने पुराने दकियानूसी रास्तों को बदल लिया है। कौन करे दिल तक लंबा सफर, खरामा-खरामा की बजाय अब तो कान से दिमाग की तरफ बढ़ जाता है प्यार। यही तो है कारोबार।
शायर कहता है वज़न बहुत होता है प्यार में, कहां है दिखाओ जरा। यहा् तो कई पट्ठे और चंद्रवदनियां ब्लूलाइन में कई प्यार का वजन ईपी के साथ ढोते रहते हैं। हम एक अदद अपना वजन लेकर ब्लूलाइन में कई बार चढ़ने में विफल हुए। प्यार को इन्होंने अपने साथ एडजस्ट करना सिखा दिया। पुरापाषाण काल के नाम को बदलकर उसकी इज्जत में इजाफा भी कर दिया। प्यार वैसे ही फ्रेंडशिप हो गया जैसे दफ्तरी Doc Boy और चपरासी Office Boy. क्या चोला बदला है जनाब। अरमानों के आंसूओं से जंग लगे प्यार पर फ्रेंडशिप का पॉलिश चढ़ा दिया। एकदम अनझेलेबल को सुटेबल बना लिया। इन्हें पता है कि दूसरे की पीठ खुजाने से अपनी खुजली नहीं मिटती। एक बार तो इन्हें देखकर भरम होता है। बैठे हैं, आस पास कोई नहीं, आसमान में निगाह गाड़े बोल रहे हैं, गोया किसी पारलौकिक शक्ति को आबे हयात का ऑर्डर दे रहे हों। बाद में पता चलता है कि ईपी से थोड़ा आधुनिक, ब्लू टूथ वाले हैं।
इस टेलीफोनिया प्यार में ये तो मालूम नहीं कि लगाव बढ़ता है, लेकिन खर्च जरूर बढ़ता है। इन ईपी वालों की अफोर्डिंग पावर बहुत होती है। मैं भी ठीक-ठीक कमा लेता हूं। फोन की छोड़िए पराठों का खर्च भी नहीं झेल पाता। एक दिन मत मारी गई और एक ईपी मैडम को रिंग दी। अरे फोन पर रिंग। उसने बिल और दिल एक साथ बैठा दिया। शायद कुछ बात बन जाती। पर हालात ऐसे हो गए कि अंगूठा खुद ही लाल बटन पर दब गया और टूं टूं टूं के साथ हमारी “फ्रेंडशिप” के आसार दिल की तरह बैठ गए।

7 comments:

ओम आर्य said...

what to comment, where words have also taken new meaning and marketized.

Ranjeet said...

मधुकर जीदिल्लीवालो के दिल मे दर्द है चुभन है इसलिय इश्क के कारोबार करने को मजबूर है ? क्या करोगे मजबूर है आदत से ? रहम करो / एक बात और दिल्लीवालो के पास छोटे दिल है इसलिय दिलवाला कहने का बहाना करते है ?

Unknown said...

मजा आ गया पढ़कर, बचपन से दिल्ली में रह रहा हूं लेकिन दिल्ली के बारे में इतना कभी नहीं सोच पाया, लफ़्जों को वाक्यों की भाषा आपने बाखूबी पिरोया, वो भी दिल की जुबान से......

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
अमीत... said...

एक मिस्ड कॉल के बाद बातचीत का अंतहीन सिलसिला...भीड़ हो तो ईपी का सहारा...आपने भी बखूबी बयां किया है दोस्त कि किस तरह अपना और दूसरों का दिल बहलाया जाए....।

राहुल यादव said...

bhai kaha ho... tumhara mobile bhi nhi lagta... my mobile number 9990846993

Unknown said...

शोध का चरम पार गए गुरु.....