Sunday, June 29, 2008

हसिया हथौड़े के पूर्वाग्रहों की बलि चढ़ता राष्ट्रहित

सत्ता डोल रही है। वामदल और लाल हो रहे हैं। फिर भी परमाणु करार को लेकर मनमोहन सरकार वामदलों की खोदी खाई को लांघ कर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ( आईएईए) की गवर्निंग बॉडी में मसविदा पेश करने को बेकरार है। अगर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किये बिना ही भारत को एनएसजी से छूट मिल जाए तो ऐसे मौके पर बेकरारी जायज ही दिखती है। अपने देश में पासपोर्ट से पहले बीरबल की खिचड़ी पक जाती है, लेकिन परमाणु व्यापार का पासपोर्ट मिल रहा है वो भी बिना हील हुज्जत के। १९७१ में रिवोक हुआ पासपोर्ट फिर हाथ में आने वाला है और काडरों की त्यौरियां अमरीकी बैर के चलते चढ़ती जा रही हैं। विचार और व्यवहार में सभी राजनीतिक दल अलग हैं, यह बात देश के मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग पर भी लागू होती है। अगर ऐसा न होता तो नंदीग्राम फायरिंग में किसानों को जान न गंवानी पड़ती। समाजवाद के ऐतिहासिक नारे को छोड़ जब माकपा ने अर्थवाद का नंदीग्राम जुगाड़वाद बिठाने की कोशिश की तब विरोध की ज्वाला धधक उठी। आज देश की चिंता की चिता में जल रहे काडरों ने, तब दमनकारी नीति ही अपनाई थी। लोकतंत्र के साथ ही किसानों का गला भी घोंटा गया। तब क्या देश के लोकतंत्र में सर्वोपरि जनता की स्वतंत्रता पर प्रहार नहीं हुआ था। स्वतंत्र विदेश नीति की लफ्फाजी की आड़ में अमरीकी वैचारिक वैमनस्य साध रहे वामदलों ने नंदीग्राम में भी जनता के हितों से खिलवाड़ किया था और अब भी ऐसा ही कर रहे हैं। भला हो मनमोहन सिंह की दृढ़ता का, शायद उम्मीद की यही आखिरी किरण बाकी है इस मुद्दे पर।
जनवादी सोच के झंडाबरदार बनकर वामदल सरकार की समाजकल्याण नीतियों को अपनी पेशकश कहते रहे और संकटकाल में 'कांग्रेस सरकार' कहकर पल्ला झाड़ते रहे। सत्ता की मलाई चाटी लेकिन चाशनी के बाहर खड़े होकर। वामदलों की भूमिका वैसी ही रही जैसी कठपुतली के खेल में सूत्रधार की। खेल अच्छा तो सूत्रधार को ताली और, बुरा तो कठपुतली को गाली। सत्ता में रहकर विपक्ष की छतरी ओढ़े बैठे रहे। जैसे छलावा बनकर कांग्रेस को छलते रहे वैसे ही जनता को छल रहे हैं। लेफ्ट के रोल मॉडल लातिन अमरीका और चीन भी अब संयुक्त राष्ट्र से पींगें बढ़ाने लगे हैं। बेहतर भविष्य के लिए वर्तमान में उन्होंने भी इतिहास की पूंछ को छोड़ दिया है। वामदलों से कोई पूछे कि हसिया और हथौड़े के इतिहास से निकले पूर्वाग्रहों की खातिर राष्ट्रहित को बलि चढ़ाना क्या उचित है ?

1 comment:

Udan Tashtari said...

अब कोई नहीं पूछ रहा हसिया हथौडे़ को..बहुत हो ली जी..मेरी मानिये कल समर्थन करते नजर आयेंगे. अकेले में उनकी पहचान ही क्या है.बिन पेंदी के लोटे हैं. आज यहाँ तो कल वहाँ.