कुछ शब्द अपने आप में उतने समग्र होते हैं जितनी अमेरिका की समग्र परीक्षण प्रतिबंध संधि भी नहीं बन पाई। सर्वसारसहित, सारगर्भित और संपूर्ण शब्द। कहीं भी फिट करो चल निकलते हैं। आज-कल एक ऐसा ही शब्द खूब जोर शोर से हमारे न्यूज़रूम में प्रचलित हुआ है। हालांकि इस पर मैं शोध कर रहा हूं लेकिन अब तक ये पता नहीं चल पाया है कि इस शब्द के जनक कौन हैं, देशज हिंदी के किस भदेस विद्वान की शब्दावली से ये शब्द उजागर हुआ है।
कबीर, रहीम, रसखान को पढ़ा। उनके अमर, अमिट और खड़ी बोली के साहित्य में भी ये शब्द कहीं नहीं है। हिंदी खड़ी बोली साहित्य के प्रथम रचियताओं और कवियों की अक्ल पर भी अचंभा होता है कि उनके दिमाग में इतना सारगर्भित शब्द क्यों नहीं आया, जो हमारे न्यूज़रूम के भदेस विद्वान ने प्रचलित कर दिया। समग्र शब्द है, “पेलो”।
पेलो शब्द व्यवस्था के साथ भी है और खिलाफ भी। कभी एनसीपी की तरह कांग्रेस के साथ खड़ा होता है ये शब्द तो कभी आरजेडी की तरह मुंह मोड़ लेता है। कभी उस तरह खबरों की गाड़ी को पटरी पर पेलने की कोशिश करता है जिस तरह मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था की गाड़ी को पटरी पर पेलने की कोशिश में हैं। कभी-कभी प्रचंड हो जाता है, उसी तरह तल्ख हो जाता है जैसे समाजवाद कांग्रेस के खिलाफ था। सब मिजाज़ के ऊपर है कि कौन किस लहज़े में इस शब्द को पेल रहा है। ख़बर आती है तो गहमागहमी के साथ किसी गले से फूट पड़ता है, ब्रेकिंग आई है पेलो। पहला बंद पेलो होता है और दूसरे बंद में पेलो का नारा एक साथ कई गलों से स्वतःस्फूर्त फूट पड़ता है। न्यूज़रूम पेलोमयी हो जाता है। बड़ी ख़बर है एक प्रोग्राम तो डिज़र्व करती है भई। तो फिर एक प्रोग्राम पेलो।
दोपहर का वक्त, ऑफिस में सुबह से मंदा हो चुका पुराना स्टाफ दरियाई घोड़े की तरह मुंह फाड़ कर उबासी लेने लगता है। दरकार होती है अगली शिफ्ट में आने वाले कारिंदों की। तब कोई ख़बर आ भी जाए तो उसी तरह नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की जाती है जिस तरह सरकार शहरी विकास को देखकर ग्रामीण विकास की अनदेखी करती रही है। विकास हुआ है, सरकार यही कहती है देखो फलां शहर, क्या कर दिखाया हमने। यही तब होता जब मंदा स्टाफ ख़बर चलाने के नहीं बल्कि पेलने के मूड में होता है। सुबह से पिल चुकी ख़बरों पर अपनी पारखी नज़र की भूरि-भूरि प्रशंसा पेलकर ताज़ा ख़बर पेलने की कोशिश की जाती है। पेलो तब भी कहा जाता है लेकिन इस तरह नहीं। पहला बंद फोड़ने वाले की आवाज़ ऐसी हो जाती है जैसे किसी परिजन की मौत की ख़बर सुना रहा हो। ख़बर आई है। दूसरा बंद धीरे से एक उबासी के साथ फूटता है, पेलो परे यार।
भूख लगे तो पेट में खाना पेलो। किसी के साथ तू-तू मैं-मैं हो जाए तो उसे पेलो। कोई नई लड़की ऑफिस में आ जाए तो उसे पेलो। विजुअल नहीं है ग्राफिक्स पेलो। सिस्टम हैंग है आईटी को फोन पेलो। आउटपुट में कमी दिखे पीसीआर को पेलो। ख़बर मे देर हो इनपुट को पेलो। हर बात में पिल पड़ो। पेलो में तरक्की है। जो पेलो को निर्झर इस्तेमाल करते हैं वो पेलो किंग की निगाह में कर्मठ होते हैं। बिना काम के व्यस्त रहना एक कला है। पेलो से ही इस कला का उदगम होता है। हर मौके पर फिट, चुस्ती और दुरुस्त रहने का फॉर्मूला है पेलो। लाइफबॉय या रिवाइटल को इस शब्द का कॉपी राइट हमारे भदेस विद्वान से खरीद कर विज्ञापन में पेल देना चाहिए।
सरकार को इस शब्द से कुछ सीख लेनी चाहिए। नीति, विदेशनीति, सुरक्षानीति, अर्थनीति, वाणिज्यनीति, स्वास्थ्यनीति सब में पेलो का इस्तेमाल होना चाहिए। फिर देश जरूर तरक्की की राह पर पिल पड़ेगा।
6 comments:
सही कहा....
ati uttam ati uttam sir ji ,bahut satik likha hain
lekin sayad main is palo ki satah tak pahunch raha hu
apne pale ka naam suna hain bahut mahan footboolar tha to bo sab footbool ko is tarah goal main palta tha
ki dekhne wale dang rah jaate the ,
to sayad koi india ka maha lakhak chala gya hoga unka match dekhne
aur wehan se apna sabd kosh badha laya hoga
'palo' sabd k saath
kripya hamare blog par bhi aane ka kast kare
hamne kuch sudhar kiya hain
ab post karke dekhna
pinkroseMadhukar Babu, very nice, after reading the satire on playing breaking news, I feel very light at heart. At least our maddnes for breaking news has invented a new word in the dictionary of news room.Thogh this word is not in prevalence for long, it has become very famous for its use. I liked your praise and criticism on 'Pelo'.
PELO...........
acha likha h mera slam
LELO...........!
Post a Comment