मनोविज्ञान का मूल नियम सामंजस्य है। इसी नियम के आधार पर आदमी खुद चाहे कभी एडजस्ट न करे, दूसरों को एडजस्ट करने की सलाह देता रहता है। आदमी की इस ‘सलाह कला’, से अब देवता भी अछूते नहीं हैं। गणेश को इंसान ने सबसे ज्यादा एडजस्टेबल नेचर का देवता बना दिया है। लम्बोदरी को विशालकाय स्थूल देह में देखा था। बड़ी सी सूंड, हाथ में लड्डू का कटोरा (पूरी मूर्ति में हमें वही एक सामग्री रोचक लगती थी) चार हाथ, उनमें अलग-अलग हथियार, पड़ोस में खड़ी इको एंड एनवायरनमेंट फ्रेंडली नेचुरल सीएनजी सवारी यानी मूषकराज।
दिमाग में ये भी आता था कि भाई गणेश का भार चूहा आखिर कैसे सहन कर लेता है? ये आज भी हमारे लिए रहस्यमयी सवाल है। एक-दो बार प्रयोगधर्मी बालमन से प्रयोग की कोशिश की लेकिन ज़िंदा चूहा पकड़ने में कामयाबी हासिल नहीं हुई। या तो चूहा फिदायीन था या फिर हमारे पकड़ने में कोई कोर-कसर रह गई, ये भी हो सकता है कि हमारे चूहा गिरफ्तारी उपकरण उपयुक्त न रहे हों।
आज कल देखता हूं कि गजानन को बहुत छोटे से ‘स्पेस’, में ‘एडजस्ट’, किया जा रहा है। शादी के कार्ड पर तो कई बार मैंने गणेश को अलग-अलग साइज़ और चीजों में एडजस्ट होते देखा। कभी पीपल के पत्ते में, कभी एक आड़ी-तिरछी रेखा में, कभी कार्ड पर उभरी हुई दो तीन सुनहरी पत्तियों में, लेकिन कल टीवी देखते हुए किसी चैनल पर एक सीरियल का प्रोमो देखा।
गणेश लीला, सीरियल का नाम। गणेश लीला भले ही हिंदी में प्रसारित हो नाम अंग्रेजी में टिपियाया गया था। LEELA के पहले L में तोड़मरोड़ कर गणेश को ठेल दिया गया था। लगता था कि सेहतमंद गणेश कई साल बात यूथोपिया के दौरे से कुपोषण का शिकार होकर लौटे हैं। बस कान और आंख के अलावा सब कुछ भुखमरी की भेट चढ़ गया है। आंखे बाहर निकल आई हैं कान सूखकर टपकने वाले हैं और बाकी सेहत सुतकर नदारद हो गई है। ऐसा लगता था कि कोई भालू शीत निद्रा से अपनी ‘फैट’ चाटकर जागा हो। या फिर मानसून की बेरूखी से भारत के किसी ऐसे प्रदेश से लौटा हो जिसमें सूखे ने लोगों को सुखा दिया।
गणेश भक्तों के लिए एडजस्ट करते आ रहे हैं, और भक्तों ने उन्हें किसी लोकल या एक्सप्रेस ट्रेन के पैसेंजर डिब्बे का यात्री समझ रखा है। जब देखो सिकुड़कर बैठने की सलाह देते हैं। भई कब तक सिकुड़ेंगे गणेश? अब क्या ट्रेन की पटरी की तरह सीधा कर दोगे? तुम तो जनता हो एडजस्ट करना फर्ज़ है, देवता को क्यों एडजस्ट करा रहे हो उस पर तो सूखे की मार नहीं पड़ी, या फिर इरादा फैशन के मुताबिक ढालकर ज़ीरो फिगर देने का है?
3 comments:
तिल का बनाया ताड़, ताड़ बना पहाड़, उस पहाड़ से प्रोमो वाले को धक्का दे दो महाराज, छुट्टी हो जाएगी ससुरे की, .....गजानन भूतगणादि सेवितं कपित्थ, जम्बूफल चारु भक्षणम, उमासुतम सोक विनास कारकम्, नमामि विघ्नेश्वर,पाद पंकजम्....जय गणेश जी की
मधुकर जी गणेश जी के पास अद्भुत शक्ति थी वे जादू से मूषा महाराज को अपने वाहन योग्य बना लेते थे .....हा...हा...हा.....!
मधुकर भाई आप लिखने का कोइ मौक़ा नहीं गवांते और किसी को भी नहीं छोड़ते... हम तो आप की कलम के कायल हैं भाई...
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