Tuesday, July 7, 2009

नियोक्ता से अपील!

निजी कंपनी में कर्मचारी और मैनेजमेंट का रिश्ता वैसा ही है जैसे जनता और सरकार का। कल्याण के फॉर्मूले होते हैं अमल नहीं। योजना है लेकिन अमलीजामा हरचरना के सुथन्ने की तरह फटा है। लोकतंत्र की ज़मीन पर सरपट दौड़ते और फलते-फूलते कॉरपोरेट में भी सामंती विचारधारा की गहरी पैठ है। काश कोई सरकारी नौकरी मिल जाती, तो हम सरकार होते और जनता बनने से बच जाते। एक साल हुआ कंपनी में काम करते। जेब की मोटाई नहीं बढ़ी। एक साल पूरा होने पर दर्जी को ऑर्डर दिया था कि जेब का अरज बढ़ा देना। सवा दो मीटर कपड़ा खरीद कर दिया कमीज़ के लिए, लेकिन सिर्फ जेब पर ज़ोर बढ़ा वज़न नहीं। पहले ही खर्च सहन नहीं हो रहे थे, कपड़े का खर्च और बढ़ गया।

पहले भी अंडरएस्टिमेशन का शिकार रहे और आज भी हैं। कंपनी ने एक साल के भीतर गधे की तरह जिम्मदारियों के बोझ तले दबा दिया। देख रहे हैं कि दूसरे गधे पंजीरी खा रहे हैं और हमें कंपनी गधा बनाकर भी अंडरएस्टिमेट कर रही है। प्रभो अब तो मान जाओ। कब तक सब्ज़ी के साथ मुफ्त मिलने वाले धनिए की तरह इस्तेमाल करते रहोगे। अब तो धनिया भी 15 रुपये पाव मिल रहा है। एक पव्वे की कीमत ही बढ़ा दो। शुभचिंतक सलाहें देते हैं, मोती पहनो, फलां पीपल पर जल चढ़ा आओ। हम तो इन दोनों ही मामलों में होशियार नहीं हैं, न भगवान को मना पा रहे हैं और न मैनेजमेंट के इंसान को। मानक हिंदी में कहें तो निरे सेक्युलर और टीटीएम (ताबड़तोड़ तेल मालिश) रहित हैं और यही सबसे बड़ी ख़ामी है।

कल प्रणब बाबू ने बजट जारी किया। इनकम टैक्स में छूट है। कृषि निवेश में इज़ाफा, कई छोटी-छोटी खुशख़बरी हैं। क्या करेंगे हम इन खुशख़बरियों का। हमारे लिए तो ये ऐसी ही हैं जैसे किसी औघड़ को कोई शादी की चमक-दमक के बारे में बताए। भाड़ में जाए इनकम टैक्स स्लैब जब इनकम ही नहीं। दो दिन से बजट की ख़बरे टिपिया रहे हैं। कोई हमारे दिल से पूछे। हम तो बजट की किसी कैटेगरी में फिट नहीं बैठते। न बीपीएल हैं न एपीएल। कोई राशनकार्ड ही नहीं बनवा पाए आजतक।

कभी-कभी अपनी क्षमताओं पर शक होता है। किसी काबिल होते तो सरकारी नौकरी नहीं करते? अब प्राइवेट मिली तो उसमें भी ऐसे मरे जा रहे हैं जैसे मुद्रा स्फीति के गिरते आंकड़ों के बीच आम ग्राहक। फिर लगता है कि अगर बेकारे होते तो कंपनी जिम्मेदारी भरा काम क्यों देती। प्रभो हमारी आपसे अपील है कि हमारा बोझ के बढ़ाने के साथ ही जेब में कुछ वज़न बढ़ा दो। कब तक घर से पैसे लेकर गुज़ारा करें। पड़ोसी ताने देने लगे हैं कि पढ़ाई-लिखाई बेकार गई। चौपाल और संन्यास में श्रद्धा रखने वाले हमसे बेहतर नज़र आते हैं। क्या संन्यास की राह पकड़ ली जाए ?

6 comments:

Udan Tashtari said...

कई बार ऐसे विचार आते हैं..हमेशा की तरह यह दौर भी न्कल ही जायेगा.क्षमताओं पर शक न करें-व्यवस्था पर करे. :)

zindagi ki kalam se! said...

bahut khoob ..likhte rahiye!

imnindian said...

don't worry this is a phase in life...it will fade away with time...udan tastari ji has given you good advice... believe in yourself, you r talented...

Brajdeep Singh said...

are sir jo rah pakadne ki soch rahe ho
use jyada paisa to aaj ke samay main sabse jyada hain,log ise profesion ki tarah le rahe hain ,aur aap aap sab kamo se mukti ke liye ise apna rahe hain
jra is baat par bhi gor farmaiye,agar ye profession chunne ka vichar hain to bata dena,chola daharn karke hum bhi line main lag jayenge
aur jra hamare blog [par bhi dhyan do
apka subhchintak
brajdeep singh

Unknown said...

Udan Tashtri has said Absolutley right Madhukar, This just a phase of this profession not all but many had passed through such bitter experience. But as every hardship has its limit, there will come a time when you shall see it go. Have faith in ur ability oneday a time will come when you will get job in good organization as in a story a stone who had faith in god was placed in a temple and another that hadn't faith in god became the part staircase in the same temple.

www.जीवन के अनुभव said...

kya khub kha... ab to sarkar ki riyayate bhi pet par lat maarne ka kaam kar rahi hai.