तीन दिन ठांय ठूंई हुई। चित्रकूट की दीवारों पर गोलियों से फाइन आर्ट बना दी यूपी पुलिस ने। स्पाइडर मैन की तरह छतें फांदता हुआ घनश्याम केवट पुलिस की टोपी के नीचे से तिड़ी हो लिया। चित्रकूट राम का अस्थाई निवास पता रहा है और यहीं घनश्याम केवट ने पुलिस के खिलाफ मोर्चा लिया। जनाबों केवट ने राम को पार किया था तो राम ने आज केवट को पार कर दिया, लेकिन गारंटी अपने बिरसे तक की थी। अहसान बराबर। अब केवट जाने या यूपी पुलिस। गंगा पार कराने के बाद तो केवट भी साथ नहीं हो लिया था।
ऐसा नहीं है कि राम साक्षात चले आए उसे पार कराने को। अक्ल की गोली दी थी। सो पुलिस की टांग के नीचे से निकल लिया। ये तो वैसा ही हुआ कि प्लेट में पड़ा मुर्गा उड़ान भर के निकल ले। पुलिस फैड़-फैड़ करती रही। तीन दिन तक अकेला केवट पुलिस के पैरों में रस्से बांधे रहा। अकेला पांच सौ पर भारी। सरकारी शूटर आंख मीचे राइफल की टिप पर देखते हुए गोली चलाते रहे। किधर गई किसी को नहीं पता। पांच-सात साल में एकाध बार तो गोली चलाने का मौका मिलता है। गोली चलने से राइफल का झटका सहन करें या निशाना लगाएं। शाबाश सरकारी निशानेबाजों।
हालांकि पुलिस ने आखिरकार उसे घेरकर मार ही लिया, लेकिन डकैत शिरोमणी केवट तो डकैत समाज में मिसाल बना गया। अब डकैत काली के बाद उसकी पूजा करेंगे। फिल्म डायरेक्टर नोट कर लें। भविष्य में डकैतों पर फिल्म बनाते हुए इस सीन को जरूर लगाएं। नहीं तो डकैत समाज विरोध प्रदर्शन पर उतारू हो जाएगा। अभिव्यक्ति हमारे उदार लोकतंत्र में सबका अधिकार है।
देसी और चुनावी चारण रचनाकारों के लिए अब डकैत समाज से भी बुलावे आने की संभावना है। उनके लिए संदेश है कि केवट की आमदनी वाली शहीदी पर भी कुछ कागज काले कर डालें। मुखड़ा मैं दिए देता हूं। “चित्रकूट में केवट ने जब, लिया था अपना डेरा जमाय। रामचंद्र संकट की घड़ी मदद देन को खुद चल आए। यूपी पुलिस को डकैत शिरोमणी ने, जमकर नाकों चने चबाए।” आगे खुद लिखो यार, सारा केवट पुराण नहीं लिख सकता, केवल ‘आइडियेटर’ की भूमिका ही निभा रहा हूं। ऐसे शब्दों से केवट को महिमामंडित करके लूटने वालों को लूटा जा सकता है।
यूपी पुलिस निराश न हो। मौके उनके लिए भी कम नहीं हैं। पुलिस भी अपने टीम वर्क को बेमिसाल करार देकर जलसा मना सकती है। इस बार यूपी पुलिस को पांच सौ गैलंटरी अवार्ड मिलने की प्रबल संभावना है। छब्बीस जनवरी को तमाम तमगे यूपी पुलिस को मिल सकते हैं। इसे कहते हैं ठोस रणनीति। केवट को मारने के लिए गांव को घेरकर रखा। उसे इधर-उधर गोलियां दागकर हैरान करते रहे। यहां पुलिस ने आबादी वाला इलाका होने के नाते पूरी सावधानी बरती और आखिरकार हैरान परेशान केवट को भागना पड़ा। भागने के लिए नाकेबंदी में छेद छोड़ा गया। यही तो रणनीति थी। इसी वजह से तो तीन दिन जंग लगी राइफलें साफ की गईं। खुले में घेरा। सकून से मारा। थका-थका कर ठोका। ऐसा अनोखा टीम वर्क अगर धोनी के लड़ाके कर जाते तो भोथरी याददाश्त का भारतीय प्रशंसक मुंह फाड़कर नहीं रोता। कुल मिलाकर तीन दिन चली मुठभेड़ से भाट-चौपाल गायन, और टीम इंडिया के लिए कई पाठ तैयार हुए हैं, तो यूपी पुलिस का शानदार टीम वर्क और रणनीति उभर कर आई है।
6 comments:
बहुत अच्छे........सटीक व्यंग्य, बधाई !
Impressive!!!
jab se ye news aayi hain main bhi is baar main hi soch raha tha ,ye news sabse pahle sahara walo ne dikhyi hain,aisa vo keh rahe the to hume bhi manna pada, aur hum bhi lage mare hue ghansyam ko dekhne,wahan ka bihangm drashy dekh kar hamari ti ankkhe khuli reh gyi,500 sipahsalar banduk taane chahti choti kare aise khde the,jaise lahor hi pahunch gye ho
tabhi main soch raha tha ki is kavat kand par vayang ki maar jaroor padegi
jo aaj aapne daal di
aur bahut sundar daali hain
ati uttam
क्या बात है...बहुत खूब...विक्रम सिंह को इसकी एक कॉपी जरूर भेजो..वैसे डीजीपी साहब मैडम की तिमारदारी में मशरूफ रहा करतें हैं।
अच्छा लिखा है..।
badiya.......
bhai contect karo....my number is 9654741530.....its my new number.. vo wala kho gya
vaah vakai bahut achchha vyang kiya hai aapne. kya khub likhate hai aap.
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