Friday, May 1, 2009

आईपीएल का कोठा

आईपीएल का हल्ला मचा है। टी. वी. ने दुनिया सिर पर उठा रखी है। बहस बहादुरों का मेला लगा है। नए नए जुमले हंसती हसीना एंकर। कुछ रिटायर्ड क्रिकेट खिलाड़ियों के बुढ़ापे की लाठी है आईपीएल। कुछ चुक चुके बल्ला घुमा रहे हैं तो कुछ ऐसे जो ‘क्रिकेट देव सेलेक्टर्स’ को रिश्वत के चढ़ावे से भी नहीं मना पाए। खुद को बेचकर खिलाड़ी मुजरा कर रहे हैं और इस मुजरे से ज्यादा मज़ा उनके मुजरे में है जो हर चौके-छक्के पर कमरिया लचकाती हैं। गौर से देखिए आईपीएल की कायापलट हो गई है। पिछले साल के जलसे में खूब पिटे गेंदबाज़, हर चौके और छक्के पर खूब ठुमके देखे। इस बार ठुमके कम दिखाए जा रहे हैं। पता नहीं गेंदबाज पिट रहे हैं या नहीं लेकिन ठुमके इतने नहीं दिख रहे जो दिल को सकून दें। ऐसी तैसी चीयर लीडर्स का मज़ा खत्म करने वालों की। कंबख्तों ने कपड़े पहना-पहनाकर ऐसा हाल कर दिया जैसे बहनें हों उनकी।

इस बार बड़ी आस थी आईपीएल से। सोचा था कि किसी की चिरौरी करके पास का जुगाड़ कर लेंगे और एकाध मैच हम भी अपनी निगाहों से पीट देंगे। ज़िंदगी में पहली बार लाइव मुजरा देखने को मिलेगा, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। लोकतंत्र का पांचसाला जलसा इस जलसे पर हावी हो गया। पास का जुगाड़ तो हो ही जाता, बस पान गजरा और कुछ दस-दस के नोटों की गड्डी का इंतजाम बाकी था। वो भी हो ही जाता। एक दिन हम भी कुंवरसाहबों वाली ज़िंदगी जी लेते। सोचते कि पाकीज़ा, उमरावजान से लेकर गुलाल की माही गिल के ठुमके देख लिए। साउथ अफ्रीका जाने की औकात नहीं अपनी। जा सकते हैं अगर ब्लूलाइन दस रुपये में ले जाए। लेकिन ये हो नहीं सकता। आईपीएल वाले ही कोई ऐसी ट्रेन क्यों नहीं चलवा देते जो उनके प्रमोशन में सैट मैक्स पर सिडनी से मुंबई तक चलती थी।

मैच किसे देखना है जी। हम तो बस आईपीएल की चीयर लीडर्स को ताड़ने के लिए टीवी से थोड़ी बहुत देर के लिए चिपक जाते हैं। खिलाड़ियों की छोड़िए टीम तक के नाम याद नहीं हैं। बस आईपीएल इसीलिए देखते हैं कि कोई गेंद को पाले के पार कर दे और चमकती काली-सफेद लहराती, इठलाती और बल खाती उमरावजान एक और चुम्मा उछाल दे।

4 comments:

Unknown said...

कुछ अधूरी बातें रह जाती हैं...बाकी टाइटिल से लेकर शब्द सामंजस्य अच्छा था...थोड़ा और लिख देते। कंजूसी कर दी।

Unknown said...

कुछ बातें अधूरी रह जाती हैं...बाकी टाइटिल से लेकर शब्द सामंजस्य अच्छा था...थोड़ा और लिख देते। कंजूसी कर दी।

राहुल यादव said...

शैली में कटाक्ष बहुत शानदार हैं। व्यंग्य क्यों नहीं लिखते। मजेदार लिख सकते हो। आपके इस लेख पर मुंह बंद करके हंसी रोकी है।

Brajdeep Singh said...

good ,hum ati khush hue apke jumle ko padh ker,kya likha hain apne ipl ke baare main,sabka apne dila ka bhav hain ,koi chori dekhne jaata hain,koi game dekhne,yahi to hain ipl ka asli maza,ek ticket pe double entertainment,kyoji sahi kahi na