कल यानि २० अगस्त को अखबार के पन्ने पलटे, तो खबरों की जगह राजीव गांधी ने घेर रखी थी। वैसे उनका हक है। देश को कंप्यूटर के जरिये विकास का नुस्खा देने वाले नेता को इतना सम्मान तो मिलना ही चाहिए। देश की जनता में विश्वास जताकर राजनीति करने वाले करिश्माई व्यक्तित्व का जन्मदिन हर अखबार और खबरिया चैनल मना रहा था। बस सेलिब्रेशन का तरीका कारोबारी था। अखबार के फुल पेज से लेकर टीवी स्क्रीन पर राजीव छाए रहे। कहीं साथ में मंत्रालय टंगे थे तो कहीं बड़े और छुटभैये नेता अपनी राजनीति चमकाने की जुगत में मुस्कान बिखेर रहे थे। विकास की राजनीति करने वाले दूरअंदेशी नेता को याद करने की आड़ में कई नेताओं की अपने राजनीतिक बरतन मांजने की दूरअंदेशी झलक रही थी। समाचार जगत कांग्रेसमयी हो रहा था। हैरत की बात यह रही कि विज्ञापन की इस चूहा दौड़ में ज़्यादातर मीडिया संस्थान राजीव की राजनीतिक यात्रा पर चंद लाइनें भी लिखना भूल गए। विज्ञापनों में राजीव के भाषणों की महत्वपूर्ण पंक्तियां चस्पा कर दी गईं थीं। उन्हें पढ़कर दुख जरूर हुआ। वह शख्सियत, विकास जिसकी राजनीति का मूलमंत्र था, जो समतामूलक समाज का संवैधानिक दु:स्वप्न पूरा करने की कोशिश में जुटा था, जो देश को तरक्की की नई दिशा दे रहा था, आज हमारे साथ नहीं है। कहते हैं, बीती हुई बिसारी दे आगे की सुधि ले। बीती हुई तो बिसर क्या मिट ही गई, लेकिन आगे की सुध किसी ने नहीं ली। लोग मरते हैं विचार नहीं। यह अलग बात है कि विचारों पर अमल न हो। यही राजीव की सोच को साथ हो भी रहा है। यूं भी हमारी राजव्यवस्था संत मलूकदास की भक्त है। "अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए सबके दाता राम"। शासन व्यवस्था अजगर की तरह कुर्सी से चिपके रहकर बिना हिले-डुले सब हजम कर जाती है। प्रशासन तो पंछी की तरह है। हिलेगा- डुलेगा, बटोरेगा- सहेजेगा लेकिन अपने लिए।
राजनीतिक हल्कों में विज्ञापन देना रवायत हो गई है। एक ढेले से दो चिड़िया मारने का जुगाड़ है। एक तरफ जनता के बीच वोट बटोरने वाला खीसें निपोरता चेहरा पहुंच जाता है, तो आलाकमान की निगाह में भी चढ़ जाते हैं। श्रद्धांजलि के पर्दे में यही राजनीतिक ध्येय रहता है। राजीव गांधी के कोटेशंस के साथ विज्ञापन छपवाकर राजनीति को सही माने नहीं मिलते। खाली रग मुश्कें कसना, पुट्ठे पीटना छोड़कर उन विचारों को अमल में लाने की जरूरत है जो जन्मदिन और बरसी के मौकों पर विज्ञापन की सजावट मात्र बनकर रह गए हैं। नेताओं से अपील है कि जिसके साथ अपने फोटो टंगवाए हैं, जिसके विचारों से अपनी राजनीतिक हंडिया पर कलेवा चढ़ा रहे हो, उन्हें अमलीजामा पहनाओ। यही तुम्हारे तथाकथित आदर्श को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।