Saturday, January 10, 2009

यार में रब दिखने के फायदे

धुन तो अच्छी है, लेकिन मुझे सोचने पर मजबूर कर देती है। हर तरफ से गाहे-बगाहे कान में पड़ ही जाती है। “तुझमें रब दिखता है यारा मैं क्या करूं, सज़दे सर झुकता है यारा मैं क्या करूं”। खूब कही है शायर ने। यार में भगवान का दिखना, है तो कुछ अजीब मगर फायदे बहुत हैं।

बरसों की साधना के बाद भी ऋषि-मुनि ईश्वर के साक्षात दर्शन नहीं कर सके। इस गीत ने तो आशिक को ब्रह्मज्ञानी बना दिया। जब चाहे तब रब को देखे, वो भी लाइव। लाइव बात करे, और अगर उसका रब प्रकट न हो सकता हो तो उसके मोबाइल पर चौबीसों घंटे बतियाने की सुविधा है। वाह जी, मोबाइल वाला रब। जब चाहो एसएमएस से दुआ भेज दो। दुआ कबूल न होने पर रिमाइंडर भी भेजा जा सकता है। साधना, तपस्या में हड्डियां गलाने की क्या जरूरत। ओम, ओम करते बांबी बन जाने से बच गया ये आशिक। बैठे बिठाए जेनेटिकली मोडिफाइड भगवान तैयार कर लिया। शाबाश, आशिक और उसकी दूरअंदेशी को सलाम।


आशिक के पास वक्त होता है पैसा हो या नहीं। ऐसे हालात में अपने रब को प्रचारित किया जा सकता है। उसके आगे अगरबत्ती, लोबान, धूप, दीप करके। भूत प्रेत निवारण शक्तियों से लैस बताकर। रिद्धि-सिद्धि बरसाने वाली सोर्स बताकर। हमारी जनता तो हर मठ पर माथा रगड़ती है। आसानी से मान जाएगी। आमदनी का अंतहीन सिलसिला चल निकलेगा। आशिक भी इससे विलक्षणता को प्राप्त होगा। गौतम बुद्ध के गुण उसमें समा जाएंगे। अपने रब के प्रचार-प्रसार में लगे रहने से सदगति को प्राप्त होगा।


किसी भी मठ पर आया दान उसके पुरोहित का झोली में ही जाता है। बस मठ का ट्रस्ट न हो। यहां तो ट्रस्ट होने का सवाल ही नहीं। भगवान खुद ही अपने आशिक की आशिकी से खुश हैं। उसकी ये दुआ तो कबूल हो ही सकती है कि ट्रस्टियों की भीड़ में आमदनी के टुकड़े न किए जाएं। मंदी से लोटपोट बाजार में आमदनी किसे न सुहाएगी। इस आमदनी से रब को और भी खुश किया जा सकता है। ये चलायमान रब है जनाब। मॉल्स, सिनेमा, मेला, ठेला, रेहड़ी, गोलगप्पों पर मंडराने वाला रब। आशिक अपने रब का हाथ पकड़कर मॉल्स में डोलते हैं। उन्हें डर रहता है कि कहीं रब किसी महंगी जीन्स, गोगल्स या फिर किसी महंगे रेस्टोरेंट में न घुस जाए। इसलिए हाथ में हाथ डलकर या फिर गलबहियां करेक विंडो शॉपिंग करते हैं। या फिर एस्केलेटर की फुर्ती के सामने भुला दी गईं नाकारा सीढ़ियों पर बैठकर गप्पे मारते रहते हैं। इस आमदनी और मठ स्थापन के बाद इस तरह बैठकर कुछ नैतिक सीत्कारवादी लोगों को सुलगाने के बजाय खुलकर मॉल्स में डोला जा सकता है।


समाज का एक तबका आज भी इन आशिकों को पसंद नहीं करता, लेकिन मठ और मठाधीशों में तो इस तबके का अगाध विश्वास है। मठ स्थापन के बाद रब और उसके आशिक कैसे भी घूमें, कार में हो या बार में कोई रोक-टोक नहीं होने वाली। मोरल पुलिस को भी इनकी भक्ति में खलल डालने से पहले कई बार सोचना होगा। आशिकों को सरेआम गोली मार दिये जाने वाले जाटलैंड यानी मेरठ के खूंखार पंचों का विश्वास भी इस मठ में हो जाएगा। कम से कम आशिकों का खून तो बहने से बचेगा। क्राइम के चढ़ते ग्राफ पर भी लगाम लगेगी।


कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि गीत की इन लाइनों में गुप्त संदेश छिपा है बस समझने की जरूरत है। समझो आशिकों, और अगर आपको कोई और फायदा इन लाइनों से झांकता मिले तो मुझे जरूर बताना।

6 comments:

Udan Tashtari said...

आशिक समझ लें तो हम भी जान जायेंगे. :)

Abdul Ansari Thoda Hatke.....! said...

जनाब यह एक अच्छी पहल है उन मजनूओं के लिए जो लड़की के लिए रब का मज़ाक उड़ाते हैं....क्या खूब कही

Unknown said...

खूब व्यंग लिखा है मधुकर बाबू.... ईश्वर सभी से प्रेम करता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि अपने प्रेमी को ही रब का दर्जा दे दें..

राजीव करूणानिधि said...

भाई मुझे तो सारी लड़कियों में रब दिखता है. खूब लिखा है आपने.

Unknown said...

rab hota kaisa hai ?

Tara Chandra Kandpal said...

क्या कह सकते हैं? व्यंग तो खूब है, लेकिन दायरा बहुत फ़ैल गया!

दिमाग का दही, और दही का रायता हो गया!

पत्रकारिता और पत्रकारिता की अपनी शैली, अपने आप को कागज़ पे उतार दो, और व्यंग का नाम दे दो!

जनाब एक सवाल पूछना चाहूँगा, उनका क्या जो आपके लेखन के अनुसार एक प्रेमिका में रब दिखने और रब भोगने के पश्चात् दुसरे रब की खोज में लग जाते हैं?